प्रणेता का परिनिर्वाण


नरेन्द्र दादाजी (प्रणेता)

हमारे प्यारे दादाजी दी. १९ दिसंबर २०२१ को गुरूचरणी लीन हुए। एक प्रणेता का जीवन कैसा होता है, यह वह जीवन के आखरी क्षण तक हमें सीखा गए। उसी ऊपर मै दो वाक्य लिखनेकी मै कोशिश कर रहा हु, अगर कुछ गलती हुई हो तो दादाजी मुझे माफ़ करे. १७ दिसंबर , दादाजी की एक ही दिन में दो बार डायलेसिस हुआ, वेंटिलेटर लगाने की नौबत आई , लेकिन जब उनका परम अनुयाई मिलने पोहचा , तो उन्से उन्होंने यही पुछा, बेटे आप कुछ तकलीफ में तो नहीं हो ना. १९ दिसंबर , दत्त जयंती का दिन आया , हर साल की तरह उनके अनुयायी ने गुरुपूजन की तैयारी की। पर इस साल गुरुपूजन हो पायेगा या नहीं इस बारेमे अनुयायी सशंक था। लेकिन दादाजी और ताईजी की केमिस्ट्री ही अलग है , जो ताईजीने गुरुपूजन करनेका स्पष्ट आदेश दिया। सुबह ७ के क़रीब, शरीर त्यागने के पश्चंत केवल अनुयायी की इच्छा पूर्ण करने हेतु उन्होंने पुनः शरीर में प्रवेश किया। इस तरह प्रणेता हमेशा अपने आखरी श्वास तक, अपने अनुयायी की हितो की रक्षण करने में निमग्न रहा। जय श्री दादाजी।

गुरुपौर्णिमा महोत्सव 2023

दादाधाम प्रणेता

विगत ५० वर्षो से दादाजी की सतत सेवा में निमग्न प्रकांड विचारक , युगद्रष्टा एवं एकनिष्ठ साधक श्री नरेंद्र दादा एलपुरे दादधाम के प्रणेता है । आप ही के मार्गदर्शन में दादधाम ने अपना वर्त्तमान स्वरुप प्राप्त किया है । आप मन वचन एवं कर्म से इतने दादामय हो गये की आपके अनुयायी आपको दादाजी ही कहने लगे ।

युवावस्था में ही अध्यात्म - मार्ग पर चल निकलने के बाद आपने सांसारिक जीवन तथा आध्यात्मिक साधना के बीच एक आदर्श संतुलित स्तापित किया । अपने सरकारी नौकरी साथ एक स्वावलंबी गृहस्थ का जीवन जिया । आपकी भार्या सौ कविता ताईे एलपुरे एक आदर्श सहधर्मिणी , सह - साधिका एवं वात्सल्य मूर्ति है । सभी स्त्री भक्तो की वे कुशल मार्गदर्शिता है ।

दादा-उपासना विधि

व्यक्तिगत रूप से हो या सामूहिक रूप से , दादाजी की नियमित उपासना में निम्नांकित जयकारो का समावेश आवश्यक है :

दादा स्मरण

दादा - स्मरण हेतु निम्नांकित मंत्र निर्धारित है :               १ ) दत्त गुरु ॐ , दादा गुरु ॐ                                  २ ) भजो दादाजी का नाम , भजो हरिहरजी का नाम

दादा धाम की निष्ठाएं

प्रणेता अपने अनुयायिओं के जीवन में गीता - वर्णित ज्ञानमार्ग , कर्ममार्ग और भक्तिमार्ग का सुंदर समन्वय सुगमता से घटित करा देते है ।

इतिहास के दस्तावेज


1850 दादाजी महाराज

दादाजी महाराज भगवान शंकर के साक्षात अवतार थे । ई सन १८५० के लगभग आप अपने गुरु ब्रमहर्षि गौरीशंकर महाराज को नर्मदा के तट पर एक ८ वर्षीय बालक के रूप में मिले थे ।गुरु के मार्गदर्शन में प्रारंभिक प्रशिक्षण के बाद आपको ऊच शिक्षा हेतु कशी भेजा गया । यहां आप अल्पकाल में ही चारो वेदों , पुराणों , उपनिषदों इत्यादि में निष्णात हो गये । गुरु महाराज ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी बना दिया । दादाजी को आश्रम चलाने के काम नितांत सांसारिक प्रतीत होते । वे अक्सर बीहड़ वनों में जाकर गहन तपस्या करने लगते । प्रचंड साधना के कारण अष्ट - सिद्धियाँ स्वयमेव आपके हस्तगत हो गई । आश्रम का कार्य औरो को सौप कर आप ध्यान , तप , तीर्थाटन एवं लोक कल्याण के कार्यों में निमग्न हो गए ।

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